गरीब, रिजर्वेशन, धन और ईमान
यह एक आश्चर्यजनक बात है कि देश के प्रधानमंत्री गरीब, रिजर्वेशन और धन के बारे में वाकपटुता दर्शाते हुए गरीबों को उच्चकोटि का लाभ-हानी का ज्ञान बाँटते हैं और उन्हें अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं ताकि वो इलेक्शन में उनके वोट बटोर कर सफल हो सकें। तो इससे क्या निष्कर्ष निकालता है?
1) प्रधानमंत्री को उनकी सफलता का संशय है। लेकिन जो पार्टी 400 सीटों का लक्ष्य साध रही है उसके नेता को संशय कैसा? मतलब देश के गरीब विपक्षी दल बनाकर उन्हें हरा सकते हैं (1977 की तरह) या फिर देश के मूल निवासी (जिसमें अमीर और गरीब भी सम्मिलित होंगे) अपना देश अपने हाथों में ले सकते हैं। उनमें पुराने राजा-राजवाडे, सरदार-सूबेदार शहरी-ग्रामीण, ज्ञानी-भील-आदिवासी इत्यादि सम्मिलित हो सकते हैं परन्तु शायद मोदी (और शायद बनिए जाती) की जगह ना बने। तो प्रधानमंत्री गरीबों का आव्हान करके अपना पक्ष मजबूत कर रहे होंगे।
2) इन्हीं मूल निवासियों में से गरीबों को अलग कर के, उनमें लालच और अपना हक कहकर धृष्टता और रोष के लिए प्रेरित करने की पृष्ठभूमि रचते होंगे ताकि उन्नति करते और सक्षम बनते मूल निवासियों को अपने नियंत्रण में चला सकें और अपने चहेतों को सफल बना सकें।
लेकिन दोनों ही स॔दर्भो में क्या वो गरीबों के ईमान का मजाक नहीं बना रहे हैं? क्या गरीब स्वराज के अन्तर्गत कर्मबद्ध नहीं होते है? क्या वो किसी भी धृष्टता या बेईमानी के सहारे समृद्ध हो सकते हैं? यदि गरीब बेईमानी करेगा तो क्या होगा?
और सबसे बडी बात, प्रधानमंत्री स्वयं स्वराज के विषय में क्या विचार करते हैं? स्वराज में हरेक क्षेत्रीय अधिकारी अपने देश बंधुओं का ख्याल करते हैं और देश को सशक्त भी करते हैं। किसी के परिश्रम के धन को लूट कर बाँटने का काम नहीं करते। लेकिन यह सबकुछ अपने देश और देश बंधुओं के लिए करते हैं, बाहरी लोगों के लिए नहीं। और बाहरी लोगों को भी कर्मबद्ध होकर गुलामी निभानी होती है। तो फिर _ _ _ _ _ _ । IPYadav
No comments:
Post a Comment
to take membership, email to support@ipycomments.co