भ्रमित परिवारवाद
कई विषयों पर हमारे नेता ही जनता को भ्रमित करने लग जाते हैं और परिवारवाद एक ऐसा ही विषय है। परिवारवाद मानव सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। जब से मानव सभ्यता विकसित हुई है, परिवारवाद ही चलाया गया है। और बड़े बड़े महापुरुष तो इसी का अनुसरण करते हैं, चाहे वो किसी भी क्षेत्र में उपलब्धि प्राप्त करते हों। क्योंकि उनके कर्मों का उपभोग उनकी संतानों का ही अधिकार होता है। और अगले जन्म में वे स्वयं उसी कुल में जन्म लेकर अपने और अपने कुल के कर्मों का फल प्राप्त करते हैं।
क्या प्रधानमंत्री मोदीजी और उनके सहयोगी इस बात से अवगत नहीं हैं? तो कैसे हिन्दू हैं वे?
इसी प्रकार राजाओं का हक उनके युवराज को मिलता है और राजपरिवार का साथ देना, देश की और राजपरिवार की रक्षा करना हरेक नागरिक का धर्म और कर्म होता है। और स्वराज के हकदार राजपरिवार के सामने तो शत्रु भी स्वयं परास्त होता है तो राजद्रोहियों की क्या बिसात। बेईमान तो पूरी दुनिया में तुच्छ ही होते हैं। हो सकता है उन्हें गुप्त तरीके से विदेशी संरक्षण और धन मिलने लगे लेकिन बेईमान क्या उनकी वफादारी में जुर्म कबूल करके सजा भुगतने और नुकसान भरने के लिए समर्पित होगा?
इसलिए, मान-सम्मान उन्ही लोगों का है जो अपने राजा के राजभक्त हों। और दूसरों को उजाड़ने वाले उनके राजा और राजवंश को उजाड़ते हैं इसलिए परिवारवाद का विरोध करते हैं। क्या कृष्ण के मद में हम अभिमन्यु की अवहेलना कर सकते हैं? और क्या जब शत्रु भी परास्त हो जाए, राजद्रोह के लिए कोई तुक बनती है? या तुकबंदी करके जनता को भ्रमित करने की कलाकारी कोई सद्गुण कहा जाए?
इसी प्रकार आज के नेता भी धर्म-कर्म कमाकर अपनी संतान को सौंपते हैं तो क्या बुरा है? उसमें सफलता-असफलता जनता के हाथ की बात होती है। उसके लिए भ्रमित नहीं अपितु सजग जनता का विकास करना होता है। और यह कार्य पार्टी वाले नहीं अपितु मूल देशवासी ही कर सकते हैं। बाहरी लोग तो राजवंश नष्ट करने की साजिश कर सकते हैं! IPYadav
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