अब चुनावी शक्ति साधना
तो अब शुरू हो गई चुनावी शक्ति साधना।
राहुल गांधीजी ने अपने श्रोताओं को हिन्दू धर्म में उल्लेखित शक्ति शब्द का प्रयोग करके अपने फाॅलोवर्स को ज्ञान बांटने की कोशिश की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनका मुकाबला कुछ ऐसी शक्तियों से है। ये ईविएम, ईडी, सीबीआई इत्यादि में है और प्रधानमंत्री की आत्मा से संचालित होती हैं। परन्तु शायद वो आधार कार्ड, पैन कार्ड और उनका नागरिकता से संबंध भूल गए! कैसे? यह विषय आगे विस्तृत है।
अब बात करें प्रतिपक्ष की शक्ति साधना की। तो मोदीजी ने छूटते ही उसे लपक लिया। क्या वे राहुलजी का ज्ञान लेकर उसका स्व-आकलन कर रहे थे या फिर वे आम आदमी को पथभ्रष्ट होने से रोकने का सुकर्म किया करते हैं। यदि यह स्व-आकलन है तो वे प्रतिपक्ष के नेता कैसे, और यदि यह सुकर्म है तो 45 साल से आम आदमी निर्दिशा क्यों भटकते रहे। क्यों आज भी इतने सालों से हो रहे 'सही और सहमति वाले काम' से संबंधित ज्ञानोदय से उत्साहित और प्रेरित होकर एकत्रित होते हैं और प्रदर्शन करते हैं? क्या मोदीजी, भाजपा और अन्य पार्टियां अपने-अपने सुकर्म में विफल रहीं? क्या सभी कुछ अनाधिकारी और धृष्ट व्यक्तियों के कठपुतली डोलते है और उनके कुकृत्यों को बढाते और चलाते हैं?
शायद इसीलिए सभी आम जनता भारतमाता स्वरूप माँ शक्ति से आस लगाये हुए हैं कि माँ शक्ति असुर शक्तियों का दमन करके अच्छे दिन लाएगी। क्या करे बिचारी जनता। एक पक्ष दश साल सत्तारूढ़ होकर भी सुकर्म में विफल है तो क्या पक्ष असुर शक्ति है या सरकारी तंत्र। दूसरा पक्ष शायद बहुमत समर्थ है लेकिन सरकारी तंत्र की 'पहले' पक्ष की (मोदीजी की) शक्तियों से बाधित है। तो क्या हमारी पहले पक्ष की और मोदीजी के सुकर्मों की धारना गलत है? आप स्वयं सोचो!
जहाँ तक भारत की आत्मा और सरकारी तंत्र की आत्मा का सवाल है तो वो अब भी मूल भारतवासी ही है। इतने सालों के दमन, उत्पीड़न, पलायन, बेरोजगारी, अवमानना और अधिकारों के हनन के पश्चात भी जनता माँ शक्ति से आस लगाती है। क्योंकि धर्म (न्याय) की बिसात पर धृष्टता के महलों वाले भी ढेर हो जाते हैं और माँ शक्ति उस ज्ञान की जननी है जिसपर धर्म आश्रित है। लेकिन पथभ्रष्ट करने वाले शायद अपने अंधकार युग का अंत ही नहीं करना चाहते। इसीलिए तो ज्ञानोदय का भरपूर विरोध और बिगाड़ करने बाद अब शायद ज्ञानोदय को रोकने की बजाय ज्ञानोदय को अपना कारनामा बनाने की कोशिश करने लगे हैं।
ज्ञान की बात करें तो सोचो - देश के भावी नेताओं के चयन का समय है। कहीं राहुल गाँधीजी और मोदीजी के विचारों का आंकलन हो रहा है तो कहीं अलग-अलग सीडी के प्रचार। मुख्य चुनाव आयुक्त - राजीव कुमार, सह चुनाव आयुक्त - ज्ञानेश्वर (ज्ञान-ईश्वर) कुमार और (साड्डे सिंग सा'ब) सुखबीर सिंह। न्याय की सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता का केन्द्र - SBI, आज का मुख्य मुद्दा - नागरिकता का अधिकार, नागरिक का आईडी - आधार, आधार का मैनेजमेंट - ??? शायद ईडी, सीबीआई, पुलिस, कुछ विशेष व्यक्ति ( 'सही और सहमति वाले काम' बताने वाले व्यक्ति!?), कुछ विदेशी (और विदेशी ताकतें)। क्या 45 साल से इन्हें KEY का ज्ञान था? इनके अब क्या विचार हैं? क्या ये Numero Uno (नम्बर एक) की विचारधारा को नहीं मानते? क्या ये KEY से छोटे होकर बैठने के बजाय अपने आप को ज्ञानोदय का राज निकाल लाने वाला सुकर्मी बतलाकर शीर्ष पर बैठने की धृष्टता तो नहीं कर रहे? आप सुराज के नागरिक हैं (!?) और आपको सजग होना है। आधार लिंक करके अब पैन कार्ड और बैंक अकाउंट्स भी इसकी पहुँच में हैं। तो अब सिर्फ नेता ही नही अपितु हरेक नागरिक इससे भयभीत होकर इनके साथ एकसूत्र में फँस जाएँगे। यह तो राजाधिकार होते हैं। तो फिर राज किसके हाथ में है? अब फिर सवाल उठता है कि स्वराज का क्या हुआ? स्वराज के षडयंत्रकारी कौन हैं? क्यों हैं? _ _ _ (शेष फिर कहीं) IPYadav
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