मेरी मेहनत के रंग
आज बीजेपी (political party) ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की। वैसे तो उसमें सोच-विचार करने की कई बातें हैं लेकिन मेरे संदर्भ में (शायद) एक महत्वपूर्ण बात रही। कम से कम यही मेरा अनुमान है। क्योंकि:-
070224 को मैंने एक पोस्ट प्रकाशित की थी जिसमें मैंने प्रधानमंत्री मोदीजी को संबोधित करते हुए एक सवाल किया था कि स्वराज के विषय में उनके क्या विचार हैं। तो उन्होंने एक उम्मीदवार चुना है जिसका नाम बांसुरी स्वराज है। तो क्या मेरा सवाल और मेरी मेहनत रंग ला रहे हैं? शायद। लेकिन अभी दिल्ली बहुत दूर है। न तो मेरे सवाल का जवाब पूरा होता है और न ही अन्य उभरते सवालों के जवाब मिलते हैं।
वैसे मैडम बांसुरी स्वराज दिल्ली से चुनाव लडेंगी ओर उन्हें केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखीजी की जगह मिली है। वैसे पता नहीं ये कहाँ की हैं! (इसे पर्सनल न लें, व्यंग्य मात्र अपने विचार कहने के लिए हैं)।
तो क्या बीजेपी प्रमुख मूलवासियों को बाहर करके बाहरी लोगों को सुदृढ़ कर रही है? क्या मोदीजी वोटों के बल (जिसमें कई बाहरी बहरूपिये हिन्दू रूप में और अनेक प्रकार के मजबूर हिन्दू मूलनिवासी हैं) पर 'स्वराज के युवराज' (और भावी राजा) को अनदेखा करने या दबाने की सोच चला रहे हैं? या फिर Indiya-Pakisthaan के बँटवारे के नाम पर अलग-अलग देशवासी बनकर और बतलाकर चैन से बंसी बजाना चाहते हैं?
सवाल अनेक हैं और पर्-राज के लिए India एक था तो स्वराज के लिए भी इंडिया एक ही होता है। मगर पर्-राज के कार्यकर्ताओं को स्वराज से निष्कासित होना होता है। वो भी बगैर बल प्रयोग के, किसी भी प्रकार के बल प्रयोग के। क्या स्वराज के हक लेते समय हम अलग-अलग राजा-रजवाडों के (1947 में 500 से अधिक अंग्रेजों से समर्थित रजवाड़े थे!) कलह और इच्छाओं को धर्मसंगत मान सकते हैं? क्या पराधीन या निजी स्वार्थ साधने या प्रतियोगिता के प्रयास किये जा सकते हैं? संक्षिप्त में, क्या जो 1947 में हो रहा था वही पुनः होने लगा है?
वैसे मैं किसी राजनीतिक दल के पक्ष-विपक्ष का नहीं हूँ लेकिन स्वराज से देशहित है और 'युवराज ही स्वराज का' बंसी बजईया होवत है। तो फिर हम इतने सालों से क्या खोवत हैं? 'स्वराज' क्यों नहीं करते? वैसे मैं मोदीजी के 10 साल का विश्लेषण नहीं कर रहा हूँ लेकिन मोदीजी ने विकास कराया है तो स्वराज का धन कहाँ है? और कुछेक कर्मठ मूलनिवासियों का धन कहाँ है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उनका धन ब्लैक मनी बता कर विदेशी ताकतें गबन करके अपने कार्यकर्ताओं को उपलब्ध कराती हैं। क्या यह स्वराज-संगत है?
औह! शायद मैं राजनीति में भी सफल हो जाऊँ। अपने सुझाव अवश्य दें। IPYadav
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